निबंध: दुर्गा पूजा पर निबंध

यशपाल प्रेमचंद

निबंध १

दुर्गा पूजा भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, ओडिशा और बिहार में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दुर्गा पूजा का आयोजन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर दशमी तक किया जाता है। यह नौ दिनों का उत्सव माँ दुर्गा की आराधना और उनके नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित है।

दुर्गा पूजा का आरंभिक महत्व हमें पुराणों और धार्मिक ग्रंथों से मिलता है। यह माना जाता है कि माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर को मारकर देवताओं और मनुष्यों को उसके अत्याचार से मुक्त किया था। महिषासुर एक अजेय शक्ति का प्रतीक था, जिसे केवल एक महिला द्वारा पराजित किया जा सकता था। माँ दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बनकर उभरीं। इस घटना को याद करते हुए दुर्गा पूजा मनाई जाती है।

दुर्गा पूजा की तैयारी कई सप्ताह पहले से शुरू हो जाती है। घरों, बाजारों, और पंडालों को सजाने का काम शुरू हो जाता है। विभिन्न समितियाँ और संगठनों द्वारा बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं, जिनमें माँ दुर्गा की भव्य मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। इन मूर्तियों का निर्माण कला और कौशल का अद्वितीय नमूना होता है। मूर्तियों को बनाने में महीनों का समय लगता है, और इनकी सजावट में विविध रंग, वस्त्र, आभूषण और फूलों का प्रयोग किया जाता है।

दुर्गा पूजा के दौरान नौ दिनों तक विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। पहले दिन, जिसे प्रतिपदा कहते हैं, माँ दुर्गा की मूर्ति की स्थापना होती है और घटस्थापना की जाती है। इसके बाद के दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन विशेष मंत्रों और श्लोकों के साथ पूजा की जाती है और भोग अर्पित किया जाता है। भोग में मिठाइयाँ, फल, और विशेष व्यंजन शामिल होते हैं।

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है। इस दौरान नृत्य, संगीत, नाटक, और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। विशेषकर बंगाल में, दुर्गा पूजा के दौरान ‘धुनुची नृत्य’ और ‘सांध्य आरती’ का विशेष महत्व होता है। महिलाएँ विशेष परिधानों में सज-धजकर पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करती हैं और भक्ति गीत गाती हैं। यह सांस्कृतिक कार्यक्रम लोगों के बीच भाईचारा और सामाजिक एकता को बढ़ावा देते हैं।

दुर्गा पूजा का एक और महत्वपूर्ण पहलू है ‘सिंदूर खेला’। दशमी के दिन, जब माँ दुर्गा की मूर्ति को विसर्जित करने का समय आता है, महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर माँ दुर्गा से अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। यह रस्म विशेषकर विवाहित महिलाओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा के अंतिम दिन, जिसे विजयादशमी या दशहरा कहते हैं, माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में मनाया जाता है। लोग नदी, तालाब या समुद्र में माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन करते हैं और अगली वर्ष के लिए माँ दुर्गा के पुनः आगमन की प्रतीक्षा करते हैं। विजयादशमी के दिन रावण दहन का आयोजन भी किया जाता है, जो रावण पर भगवान राम की विजय का प्रतीक है।

दुर्गा पूजा का महत्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक महत्व भी है। यह पर्व लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है। इस दौरान विभिन्न समुदायों और समाज के लोग एक साथ मिलकर पर्व मनाते हैं और आपसी भाईचारे को बढ़ावा देते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान बाजारों में भी रौनक रहती है, जिससे व्यापार और आर्थिक गतिविधियाँ भी बढ़ती हैं।

दुर्गा पूजा का पर्व हमारे जीवन में धार्मिकता, संस्कृति और सामाजिकता का महत्व समझाता है। यह हमें याद दिलाता है कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई की जीत हमेशा होती है। माँ दुर्गा का रूप हमें यह सिखाता है कि हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानकर सभी बाधाओं को पार करना चाहिए। उनकी पूजा हमें यह विश्वास दिलाती है कि जब हम सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो हम किसी भी संकट का सामना कर सकते हैं।

आधुनिक समय में भी, दुर्गा पूजा की प्रासंगिकता बनी हुई है। यह पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखने का एक माध्यम है। यह हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी परंपराओं का सम्मान करने की प्रेरणा देता है। इसके अलावा, यह पर्व हमें अपने परिवार और समुदाय के साथ समय बिताने का अवसर भी प्रदान करता है। दुर्गा पूजा के माध्यम से हम अपनी धार्मिकता और आध्यात्मिकता को पुनः जागृत कर सकते हैं।

दुर्गा पूजा भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। माँ दुर्गा की पूजा हमें धार्मिकता, संस्कृति और सामाजिकता का महत्व समझाती है। हमें इस पर्व को पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए और अपने जीवन में माँ दुर्गा के आदर्शों को अपनाना चाहिए।

निबंध २

दुर्गा पूजा, जिसे दुर्गोत्सव भी कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख त्यौहार है, विशेषकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और त्रिपुरा में। यह त्यौहार माँ दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है, जो शक्ति और शक्ति की देवी हैं। दुर्गा पूजा का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस निबंध में हम दुर्गा पूजा के विभिन्न पहलुओं, इसके महत्व और इसकी विशेषताओं पर चर्चा करेंगे।

दुर्गा पूजा का आरंभ शारदीय नवरात्रि के समय होता है और यह दस दिनों तक चलता है। पहले नौ दिनों को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है, जबकि दसवें दिन को विजयादशमी या दशहरा कहा जाता है। नवरात्रि के दौरान, माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री हैं। दुर्गा पूजा का समापन दशमी के दिन होता है, जब माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।

दुर्गा पूजा का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं है, बल्कि यह त्यौहार हमारे समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर करता है। यह समय होता है जब लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इस त्यौहार का आनंद लेते हैं। दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है और इसमें विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ शामिल होती हैं, जैसे पूजा, अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत और नृत्य। इस त्यौहार के दौरान विभिन्न प्रकार की खाने-पीने की चीज़ें भी तैयार की जाती हैं, जो इस त्यौहार को और भी विशेष बनाती हैं।

दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों का निर्माण किया जाता है, जहां माँ दुर्गा की मूर्तियों को स्थापित किया जाता है। इन पंडालों को विभिन्न थीमों पर सजाया जाता है और इन्हें देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। पंडालों की सजावट और माँ दुर्गा की मूर्तियों की भव्यता इस त्यौहार की विशेषता है। प्रत्येक पंडाल का अपना विशेष महत्व होता है और इसे देखने के लिए लोग लंबी कतारों में खड़े होते हैं।

दुर्गा पूजा का एक और महत्वपूर्ण पहलू है, देवी दुर्गा की कथा और उनकी विजय की गाथा। यह कथा महिषासुर के साथ उनकी युद्ध की कहानी पर आधारित है, जो एक शक्तिशाली असुर था। देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करके धर्म और न्याय की स्थापना की थी। इस कथा को सुनकर और पढ़कर हमें यह सिखने को मिलता है कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है। यह कथा हमें यह प्रेरणा देती है कि हमें अपनी समस्याओं और चुनौतियों का सामना साहस और धैर्य के साथ करना चाहिए।

दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार भारतीय कला और संस्कृति का प्रतिबिंब है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें नाटक, संगीत, नृत्य और अन्य कलात्मक प्रस्तुतियाँ शामिल होती हैं। ये कार्यक्रम न केवल लोगों का मनोरंजन करते हैं, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति और परंपराओं से भी जोड़ते हैं।

दुर्गा पूजा का सामाजिक महत्व भी उल्लेखनीय है। यह त्यौहार सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है। दुर्गा पूजा के दौरान लोग अपनी धार्मिक और सामाजिक भेदभावों को भूलकर एक साथ पूजा और उत्सव मनाते हैं। यह त्यौहार समाज में एकता और भाईचारे का संदेश देता है और हमें यह सिखाता है कि हमें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं को सम्मान करना चाहिए।

दुर्गा पूजा का आर्थिक महत्व भी महत्वपूर्ण है। इस त्यौहार के दौरान बाजारों में काफी रौनक होती है और व्यापार में वृद्धि होती है। लोग नए कपड़े, आभूषण, और अन्य वस्त्र खरीदते हैं, जिससे व्यापारियों और दुकानदारों को लाभ होता है। इसके अलावा, पंडाल निर्माण, मूर्तियों की स्थापना, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन में भी काफी खर्च होता है, जिससे विभिन्न उद्योगों और सेवाओं को आर्थिक लाभ होता है।

दुर्गा पूजा के आयोजन में समाज के विभिन्न वर्गों का योगदान होता है। पंडाल निर्माण में कारीगर, मूर्तिकार, और सजावट करने वाले कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसके अलावा, विभिन्न स्वयंसेवी संगठन और सामुदायिक समूह भी दुर्गा पूजा के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह त्यौहार समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाकर एकता और सहयोग का संदेश देता है।

दुर्गा पूजा के दौरान पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। मूर्तियों का विसर्जन करते समय जल प्रदूषण की समस्या को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण अनुकूल सामग्री का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, पंडाल निर्माण में भी पर्यावरण मित्र सामग्री का उपयोग करना चाहिए। “क्या आप जानते हैं?” – दुनिया के कई हिस्सों में अब प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों के बजाय पर्यावरण-अनुकूल मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग बढ़ रहा है।

दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्यौहार हमें एकता, सहयोग, और सामाजिक समरसता का संदेश देता है। दुर्गा पूजा के माध्यम से हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखते हैं और उन्हें आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करते हैं। हमें इस त्यौहार का सम्मान करना चाहिए और इसे मनाने के दौरान पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखना चाहिए। दुर्गा पूजा का यह पर्व हमें गर्व, सम्मान, और सामाजिक समरसता की भावना से ओतप्रोत करता है।

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