निबंध: डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर निबंध

यशपाल प्रेमचंद

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद, दार्शनिक, और भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। उनका जीवन और उनके कार्य हमें शिक्षा, विचार और सेवा के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करते हैं। उनकी सोच और दृष्टिकोण ने न केवल भारतीय समाज को बल्कि विश्वभर के लोगों को प्रभावित किया है। इस निबंध में हम डॉ राधाकृष्णन के जीवन, उनकी शिक्षाओं और उनके योगदान पर चर्चा करेंगे।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी और माता का नाम सीता था। वे एक सामान्य परिवार से थे, लेकिन उनकी शिक्षा के प्रति गहरी रुचि और समर्पण ने उन्हें अद्वितीय बना दिया। राधाकृष्णन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तिरुपति और वेल्लोर में प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी की।

राधाकृष्णन ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की। वे मैसूर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे। उनकी शिक्षण शैली और उनकी विचारशीलता ने उन्हें छात्रों और सहकर्मियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय बना दिया। राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षा केवल जानकारी का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि यह एक साधन है जिससे व्यक्ति अपने जीवन का उद्देश्य समझ सकता है और समाज के लिए कुछ सार्थक कर सकता है।

डॉ राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शनशास्त्र को विश्व स्तर पर मान्यता दिलाई। वे वेदांत के महान व्याख्याता थे और उन्होंने भारतीय दर्शन को सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत किया। उनकी लेखनी और व्याख्यानों ने भारतीय दर्शन को न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय बना दिया। उन्होंने ‘भारतीय दर्शन का इतिहास’ (A History of Indian Philosophy) जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की, जो आज भी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

डॉ राधाकृष्णन की अद्वितीय सोच और दर्शन ने उन्हें राजनीति के क्षेत्र में भी ख्याति दिलाई। वे 1949 में सोवियत संघ में भारत के राजदूत बने और उन्होंने इस पद पर अपनी योग्यता और कूटनीति का परिचय दिया। 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बने और 1962 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में चुने गए। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल अत्यंत सफल रहा और उन्होंने अपने आदर्शों और सिद्धांतों का पालन करते हुए देश की सेवा की।

राष्ट्रपति के रूप में डॉ राधाकृष्णन का दृष्टिकोण अत्यंत व्यापक और समर्पित था। वे शिक्षा के महत्व को भलीभांति समझते थे और उन्होंने देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनका मानना था कि एक शिक्षित समाज ही प्रगति कर सकता है और इसलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और विकास के लिए कई नीतियाँ लागू कीं। उनके प्रयासों से देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हुआ और अधिक से अधिक लोग शिक्षा के प्रति जागरूक हुए।

डॉ राधाकृष्णन का जन्मदिन, 5 सितंबर, भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस शिक्षकों के महत्व और उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक समाज के निर्माता होते हैं और वे अपने ज्ञान और अनुभव से समाज को सही दिशा में ले जाने का कार्य करते हैं। शिक्षक दिवस का आयोजन उनके इस विचार को सम्मानित करने के लिए किया जाता है।

डॉ राधाकृष्णन का जीवन और उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि शिक्षा और सेवा का महत्व क्या है। उन्होंने अपने जीवन में जिन मूल्यों और सिद्धांतों का पालन किया, वे आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी शिक्षाओं ने न केवल भारतीय समाज को बल्कि विश्वभर के लोगों को नई दिशा और दृष्टिकोण प्रदान किया है। उनके विचार आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक हैं और हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का बोध कराते हैं।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान व्यक्तित्व थे जिनका जीवन और कार्य हमें शिक्षा, सेवा और विचारशीलता के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करते हैं। उनकी शिक्षाएँ और उनके योगदान हमारे समाज को हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। हमें उनके आदर्शों का पालन करना चाहिए और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर अपने समाज और देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए। डॉ राधाकृष्णन की महानता का सम्मान करते हुए हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम उनके विचारों और सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं।

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