क्या है जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव

यशपाल प्रेमचंद

जैसे-जैसे हम घर से निकलते हैं, मौसम की अनिश्चितता हमें परेशान करती रहती है।

जलवायु परिवर्तन एक ऐसी व्यापक घटना है जो पूरे ग्रह की प्राकृतिक प्रणालियों को बदल रही है।

विषयसूची

पृथ्वी का जलवायु परिवर्तन क्या है?

जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए, हमें पहले जलवायु का अर्थ समझना होगा। जलवायु परिभाषित की जाती है एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में, लंबे समय तक, मौसम की औसत स्थितियों के रूप में। जब इस औसत में महत्वपूर्ण और लम्बे समय तक परिवर्तन होता है, तो हम इसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। ये परिवर्तन प्राकृतिक घटनाओं जैसे कि सौर चमक, ज्वालामुखी विस्फोट या मानव निर्मित क्रियाकलापों, जैसे कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और वनों की कटाई के कारण हो सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक और मानवजनित दोनों ही तरह के होते हैं। मानव द्वारा होने वाले परिवर्तन अक्सर औद्योगिकीकरण के बाद तेजी से बढ़ रहे हैं। ये परिवर्तन अब एक वैश्विक चिंता बन गई है, खासकर उत्तरोत्तर बढ़ते तापमान के कारण, जो दुनिया भर में समुद्र स्तर के बढ़ने और अनुपातहीन मौसमी घटनाओं का कारण बनता है।

परिभाषा और उदाहरण

जलवायु परिवर्तन का अर्थ होता है किसी क्षेत्र की लंबी अवधि की मौसमी औसत में परिवर्तन आना। इसके प्रभाव से पेड़-पौधे, जीव-जंतु और मनुष्य सभी प्रभावित होते हैं। परिवर्तित जलवायु के कारण, न केवल पर्यावरणीय स्थितियाँ बदलती हैं, बल्कि इसका सीधा असर हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन पर भी पड़ता है। उदाहरण स्वरूप, ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई जगहों पर अत्यधिक गर्मी के दिनों की संख्या बढ़ गई है और अत्यधिक बारिश या आकस्मिक सूखे जैसी घटनाओं में वृद्धि हुई है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारणों में से एक है गर्मी और बिजली का उत्पादन, जिसमें कोयले और प्राकृतिक गैस जैसे ईंधन जलाए जाते हैं। उत्सर्जित गैसों के कारण, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन, वातावरण में गरमाव बढ़ता है, जिसे ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ कहते हैं।

परिवहन उद्योग गैसोलीन और डीजलके जलने से निकलनेवाले कार्बन उत्सर्जन का बड़ा स्रोत है। वनों की कटाई भी एक बड़ा कारण है, क्योंकि वनस्पति कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करते हैं। इसके अलावा, कृषि खेतों से नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों का उत्सर्जन भी जलवायु परिवर्तन का एक कारण है। मानवजनित गतिविधियाँ कारकों में सबसे प्रबल मानी जाती हैं, और इसी वजह से जलवायु परिवर्तन के समाधान हेतु विश्वव्यापी स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा प्रभाव पृथ्वी के वातावरण और जीवन पर पड़ रहा है। पिछले 100 वर्षों में धरती का औसत तापमान लगभग 1 डिग्री फारेनहाइट बढ़ा है, जिसके कारण हिमनदों का पिघलना और समुद्र स्तर का बढ़ना प्रमुख समस्याएं बन कर सामने आए हैं।

इसके अतिरिक्त, अनियमित और भीषण मौसमी घटनाएं जैसे कि भारी बारिश, तूफान, और गर्मी की लहरें अधिक बार होने लगी हैं जिससे भूकंपों में भी वृद्धि देखी गई है। ये परिवर्तन न सिर्फ प्राकृतिक स्थितियों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि मनुष्यों के साथ-साथ पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं के जीवन को भी खतरे में डाल रहे हैं।

मौसम बदलने के प्रभाव

मौसम की अनियमितता अब पूरे विश्व में स्पष्ट दिख रही है। यहां तक कि पेड़-पौधे, जो मौसम पर बहुत हद तक निर्भर करते हैं, उन पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा है। सूखा, बाढ़, या बहुत अधिक गर्मी के चलते अनेक प्रौढ़ों की मृत्यु हो रही है, और कई देशों में खराब फसल की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। आर्थिक रूप से कमजोर लोग इसका ज्यादा शिकार हो रहे हैं क्योंकि उनके पास इन परिस्थितियों से निपटने के लिए संसाधनों की कमी होती है।

तापमान के प्रभाव

तापमान में हो रहे बदलाव का सीधा असर वैश्विक वनस्पति और जलवायु पर पड़ रहा है।नतीजतन, जलवायु अनुरूप न होने से वनस्पति में कमी आ रही है। अत्यधिक गर्मी और बरसात की समस्याओं से जीव-जंतु भी प्रभावित हो रहे हैं, जिनके रहने के स्थान और भोजन संकट में पड़ गए हैं।

वनस्पति और जीव-जंतुओं पर प्रभाव

लंबे समय से चली आ रही क्लायमेंट कंडिशनिंग से हटकर, वनस्पति और जीव-जंतु अब पर्यावरणीय दबाव में हैं। कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं और उनके नैसर्गिक निवास स्थान बदल रहे हैं। छोटे जीवों की मृत्यु और कमी, जिससे पूरे भोजन चक्र पर असर पड़ रहा है।

समुद्री एवं जलमध्य जीवन पर प्रभाव

महासागरों का तापमान बढ़ने से मछली के भंडार खतरे में हैं, और अम्लीकरण से समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में विपरीत प्रभाव पड़ रहे हैं। जलीय जीवों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है और समुद्री जीवन पर अनिवार्य रूप से दबाव बढ़ रहा है।

मानव समुदाय पर प्रभाव

मानव समुदाय जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को सबसे अधिक महसूस कर रहे हैं। कृषि, स्वास्थ्य और आजीविका सभी क्षेत्रों में प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं। अत्यधिक मौसमी चरम सीमाओं से फसलों की बर्बादी, संक्रामक रोगों का प्रसार और वैश्विक खाद्य संकट और अधिक बढ़ रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन के संबंध में नीतियों का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन है। इस स्थिति का सामना करने के लिए विभिन्न देशों द्वारा नीतियाँ बनाई जा रही हैं। ऐसी नीतियाँ कई प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन में मदद करती हैं और उनके द्वारा उत्पन्न जोखिम को कम कर सकती हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका में बढ़ते रिकॉर्ड गर्म तापमान और उससे उत्पन्न जलवायु सम्बन्धी संकटों ने नीति-निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के मुकाबले के लिए और अधिक प्रतिबद्ध बनाने की जरूरत दिखाई है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से बीजारुपता की समस्या और खाद्य सुरक्षा का मुद्दा बढ़ रहा है, जिससे स्थिरता और संरक्षण के लिए नीति निर्धारण और भी जरूरी हो गया है।

जलवायु परिवर्तन की नीतियों की महत्वता

जलवायु परिवर्तन से मानव जाति और पृथ्वी के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है। इसे देखते हुए, वैश्विक स्तर पर नीतियों का महत्व काफी बढ़ रहा है, ताकि इस संकट से सामना किया जा सके। वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए आवश्यक बदलावों को लागू करने के लिए नीतियों का अद्यतन अत्यंत अहम है। अंटार्कटिका में बर्फ की गिरावट और समुद्री जल स्तर की बढ़ोतरी को रोकने के लिए भी नीतियों की जरूरत है।

कृषि और खाद्य सुरक्षा के संबंध में नीतियों का प्रभाव

कोविड-19 महामारी ने विश्वभर की कृषि व्यवस्थाओं को प्रभावित किया है, जिसके कारण कृषि क्षेत्र में बाल श्रम की वृद्धि हो रही है। इसके मुकाबले के लिए सरकारी नीतियों की कमी स्पष्ट नजर आती है। एफएओ के अनुसार, कृषि में बाल श्रम की समाप्ति के लिए सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है और इससे संबंधित नीतियों की मजबूती महत्वपूर्ण है।

ऊर्जा उत्पादन और उपयोग में नीतियों का प्रभाव

ऊर्जा उत्पादन और उसके उपयोग की नीतियाँ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मुख्य योगदान दे सकती हैं। ऊर्जा संयंत्रों और परिवहन नियमन में सुधार करके हमारी हवा को शुद्ध बनाया जा सकता है और आर्थिक तथा स्वास्थ्य संबंधी हितों की रक्षा की जा सकती है।

वन्यजीव और प्रजाति संरक्षण में नीतियों का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन वन्यजीवों पर भारी प्रभाव डाल रहा है और उनके शिकारकों की संख्या में वृद्धि की संभावना को बढ़ा रहा है। इसलिए, संरक्षण नीतियाँ इस क्षेत्र में उत्कृष्ट महत्व रखती हैं। यदि समुदायों को इन नीतियों की समझ हो और वे इसमें भाग लें, तो संरक्षण कार्यक्रमों में सुधार हो सकता है जिससे वन्यजीवों और विविध प्रजातियों का संरक्षण प्रबल होगा।

जलवायु परिवर्तन के संबंध में भविष्य की संभावनाएं

जलवायु परिवर्तन एक ज्वलंत मुद्दा है जो विश्व बिरादरी के लिए गंभीर चिंता का विषय है। औसत जलवायु तापमान में वृद्धि के साथ ही समुद्री जल स्तरों में बढ़ोतरी और चरम मौसमी घटनाओं की अधिकता एवं तीव्रता ने भविष्य में इसके प्रभावों पर अनुसंधान की आवश्यकता को और भी बढ़ा दिया है। CO2 और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उच्चांकित उत्सर्जन के कारण, आने वाले दशकों में ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति और भी विकट हो सकती है।

अनुमानित तापमान और समुद्री जल स्तर में वृद्धि से आवास और खाद्य संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है जो समाजों के स्थायित्व और स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से हवाई घटकों की तीव्रता में वृद्धि एवं आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों के व्यापक असर संभव हैं। इसके चलते समुद्री जीवन और जलवायु सुरक्षा में बाढ़ और फसलों के नुकसान की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी।

तापमान बदलने के असर की संभावनाएं

19वीं सदी के अंत से अब तक के दौर में पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फारेनहाइट बढ़ चुका है। इसके परिणामस्वरूप समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी हुई है जो तटीय क्षेत्रों के लिए काफी चिंताजनक है।

वर्तमान ट्रेंड्स को देखते हुए, यह बढ़ोतरी अगले शताब्दी तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक सीमित करना जरूरी है, वरना वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस तक की भी बढ़ोतरी हो सकती है। इसका मतलब होगा कि जलवायु संकट से सीधे प्रभावित होने वाले क्षेत्रों, जैसे कृषि, जीवन-रेखाएँ और मानव स्वास्थ्य पर अधिकांश प्रभाव पड़ेगा।

पानी की संपदा की संभावनाएं

पानी जीवन का आधार है और जलवायु परिवर्तन से इसकी संपदा पर भारी असर पड़ने की संभावना है। सूखा और बाढ़ की घटनाएँ ज्यादा आम होती जा रही हैं, जिससे महिलाओं और बच्चों को सबसे ज्यादा कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।

इससे अति आधारभूत संसाधनों की कमी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों पर और भी दबाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन से पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के लिए अनुकूल जलवायु और जलस्रोतों की उपलब्धता में भी कमी आ सकती है, जो जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।

सामुदायिक और आर्थिक परिवर्तनों की संभावनाएं

बदलती जलवायु से किसानों की फसलों पर सीधा असर पड़ता है, जिससे कृषि-आधारित आय प्रभावित होती है और खाद्य सुरक्षा की समस्या उत्पन्न होती है। इसके अलावा, हवा और जल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे हीटस्ट्रोक, दस्त, मलेरिया और डेंगू बुखार में वृद्धि होती है।

जलवायु परिवर्तन से 2050 तक सालाना 500,000 से अधिक वयस्कों की मृत्यु होने और हर वर्ष अतिरिक्त 250,000 मौतें होने का अनुमान है। ये मौतें बुजुर्गों और अन्य संवेदनशील समूहों के लिए विभिन्न स्वास्थ्य जोखिमों के कारण हो सकती हैं।

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